Tuesday, 14 October 2014

मध्यभारत में आदिवासी : अशांति और संस्कृति

मध्यभारत  में आदिवासी संस्कृति सदियों से अक्षुण रही है परन्तु पिछले दो दसकों में क्षेत्रीय अशांति के लक्षण दिखाई देने लगे  है . बहुतायत  लोगों का मानना है कि गरीबी में डूबे बेरोजगार आदिवासी युवायों में कुंठा कि स्थिति ने उन्हें भटकाव कि ओर मोड़ दिया है .गरीबी और बेरोजगारी के अलावे विस्थापन , पुनर्वास का अभाव , नक्सल प्रभाव ,उत्पीड़न , सरकारी उपेक्षा , बहुराष्ट्रीय कंपनियों का आगमन , विकास में सहभागिता का अभाव ,खनिज दोहन तथा इसके व्यापार से भागीदारी मिलना मुख्य करक हैं. इनके अलावे , भारतीय संविधान कि पांचवी अनुसूची के  तहत आदिवासी कल्याण के प्रावधानों कि उपेक्षा कर ग्राम सभा का दीर्घ काल तक  निस्क्रिय रहना , राज्यपाल द्वारा आदिवासी  सम्बन्धी संवैधानिक अधिकारों का उपयोग किया जाना , पेसा के अनुरूप  ग्रामसभा के अधिकारों का क्रियान्वयन किया जाना  आदि हैं.
भारत सरकार  तथा विभिन्न प्रन्तीय सरकारों ने  आदिवासी विकास हेतु विभिन्न योजनाओं के नाम पर काफी बजट राशि  का प्रावधान कर रखा है परन्तु उनका उपयोग हुआ या नहीं यह सुनिश्चित करने कि जरुरत नहीं समझी जाती.
संविधान ने प्रांतीय राज्यपालों को आदिवासी अधिकारों कि रक्षा का दायित्व सौंप  रखा है परन्तु दुर्भाग्यवश उनका  ध्यान इस ओर आकृष्ट करने तथा समाधान निकलने का प्रयास नहीं हो सका है.

 झारखण्ड के चोबीस में १८ ज़िले ऑज  नक्सलवाद के प्रभाव में हैं .नक्सल विचार और विद्रोह आदिवासी क्षेत्र में अशांति का मुख्य कारन बन गया है. यह बेहद खतरनाक स्थिति है जो भारतीय लोकतंत्र के अस्तित्व को चुनौती देता है . यह एक अवैध युध कि स्थिति है .नवें   पंचवर्षीय योजनायों में रुपया  ३६३२.४५ करोड़ आकलित राशि तथा योजना आयोग द्वारा २७४६.६३ करोड़ रु. ग्रांट इन एड  कि आवंटित राशि  पूरी तरह खर्च नहीं किया जा सका.
दसवें पंचवर्षीय योजनायों में   योजना आयोग द्वारा १७५४ करोड़  रु.   कि आवंटित राशि को पूरी तरह खर्च नहीं किया जा सका.
शIरांसतः, यह    स्पस्ट  है कि विभिन्न विभागों कि निस्क्रियता के कारण आदिवासी विकास राजनैतिक विडम्बनाओं का द्वोतक बनकर रह गया. देश के अन्य क्षेत्रों कि तुलना में आदिवासी विकास कि गति धीमी है जिससे युवा वर्ग बेरोजगारी और गरीबी का शिकार होकर नक्सल गतिविधियों का समर्थक हो गया है फलतः आदिवासी क्षेत्र  अशांत हो गए है. इस स्थिति को काबू में लाने हेतु  अविलम्ब गरीबी और बेरोजगारी दूर करने के अलावे  पुनर्वास  , उत्पीड़न कि समाप्ति  ,   विकास में सहभागिता  ,खनिज दोहन तथा इसके व्यापार से भागीदारी जैसे उपाय किये जाने चाहिए . इनके अलावे , भारतीय संविधान कि पांचवी अनुसूची के  तहत आदिवासी कल्याण के प्रावधानों को लागू  कर ग्राम सभा को सक्रिय करना  , राज्यपाल द्वारा आदिवासी  सम्बन्धी संवैधानिक अधिकारों का उपयोग किया जाना , पेसा के अनुरूप  ग्रामसभा के अधिकारों का क्रियान्वयन किया जाना  चाहिए.

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